अमीर और गरीब के बीच बढ़ती असमानता सफल आर्थिक मॉडल का आधार नहीं बन सकता

प्राकृतिक संसाधनों के मामले में हमें विकास के एक नए आर्थिक मॉडल की आवश्यकता है। नीतिगत उपाय के रूप में सरकारें निजी क्षेत्र को सार्वजनिक भलाई के लिए इन संसाधनों का दोहन करने की अनुमति देती रही हैं। हालांकि हम एक अनोखे रूप में घोर पूंजीवाद की ओर बढ़ रहे हैं। सार्वजनिक संपत्ति और संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा सत्ता के करीबी खिलाड़ियों द्वारा कब्जे में लिया जा रहा हैं। हम धीरे-धीरे, लेकिन निश्चित रूप से एक आर्थिक कुलीनतंत्र बन रहे हैं, जहां प्राकृतिक संसाधनों जैसी सार्वजनिक संपत्तियों पर अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों में कुछ ऐसे लोगों द्वारा एकाधिकार बना लिया जाता है जो बदले में खुद को और शक्तिशाली बना लेते हैं। आर्थिक समृद्धि के बिना गरीबों का उत्थान नहीं किया जा सकता, पर समृद्धि के लिए विकास के एक ऐसे मॉडल की आवश्यकता होती है, जो उन सभी को जगह दे जो विविध आर्थिक उद्यमों में भाग लेते हैं। आर्थिक संसाधनों के कुछ हाथों में केंद्रित होने से इस तरह के परिणाम संभव नहीं।

आज हम जो देख रहे हैं वह अमीर और गरीब के बीच बढ़ती असमानता है। जनसंख्या में अमीर लगभग दस प्रतिशत हैं, जिसमें से सबसे अमीर एक प्रतिशत के पास 2019 में उत्पन्न 42.5 प्रतिशत राष्ट्रीय संपत्ति थी, जबकि सबसे निचले स्तर के 50 प्रतिशत के पास मात्र 2.8 प्रतिशत संपदा थी। इसी तरह सबसे अमीर दस प्रतिशत लोगों के पास कुल राष्ट्रीय संपत्ति का 74.3 प्रतिशत है, जबकि शेष 90 प्रतिशत के पास मात्र 25.7 प्रतिशत। जनवरी, 2020 में जारी ऑक्सफैम की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सबसे अमीर एक प्रतिशत लोगों के पास 95.3 करोड़ लोगों की तुलना में चार गुना से अधिक संपत्ति है। भारत में लगभग 80 करोड़ लोग प्रति माह दस हजार रुपये से कम कमाते हैं। यह विकास को बल देने वाले एक सफल आर्थिक मॉडल का आधार नहीं बन सकता। हमें एक विशिष्ट रणनीति की जरूरत है।

संचार में क्रांति लाने वाला दूरसंचार क्षेत्र भारी-भरकम कर्ज तले दबा

उदाहरण के लिए दूरसंचार क्षेत्र को देखिए, जिसने संचार में क्रांति लाई और उसे देश के लगभग एक अरब लोगों तक पहुंचाया। यह भारी-भरकम कर्ज तले दबा है, जिसमें एजीआर बकाया भी शामिल है। इस वर्ष अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार नीलामी के सिद्धांत और नए नीलामी प्रारूपों के नवाचार में सुधार के लिए डॉ. पॉल मिलग्रोम और डॉ. रॉबर्ट विल्सन को दिया गया है। उन्होंने बताया कि नीलामी की रूपरेखा प्राय: खरीदारों को ऐसे संसाधन क्रय करने में अधिक बोली लगाने की ओर ले जाती है, जिसके बिना उनका उद्यम चल नहीं सकता। ऐसे संसाधन ऐसे उद्यमों के लिए कच्चा माल होते हैं। इसका परिणाम ‘विजेता अभिशाप’ कहलाता है। इसलिए इसका उपाय यह है कि नीलामी को इस तरह से डिजाइन किया जाए कि विजेता को इतनी आय हो कि वह अपने ऋण दायित्वों का निर्वहन करने के लिए राजस्व अर्जित करने की स्थिति में हो।

स्पेक्ट्रम और कोयला ब्लॉक की नीलामी से सरकार की आशा चूर-चूर हो गई

स्पष्ट रूप से भारत में स्पेक्ट्रम की नीलामी को खराब तरीके से डिजाइन किया गया, जिसके परिणामस्वरूप दो प्रमुख खिलाड़ी बाजार को नियंत्रित कर रहे थे। सरकार के दावों के बावजूद कोयला ब्लॉकों की नीलामी ने निजी क्षेत्र में बोली लगाने वालों को उत्साहित नहीं किया। सरकार को उम्मीद थी कि यह नीलामी उसके लिए भारी कमाई का स्नोत होगी। यह आशा चूर-चूर हो गई और अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों पर गहरा असर पड़ा। कोयले का हमारा स्वदेशी उत्पादन बाजार की मांगों को पूरा करने के लिए अपर्याप्त है और निजी उद्यमों द्वारा कोयले के ब्लॉक की नीलामी में भाग न लेने के कारण अधिक कीमत पर कोयले का आयात करना उद्योग को भारी पड़ रहा है।

परिसंपत्ति की कीमत उद्यम को अलाभकारी बना देगी

वर्ष 2017 से भारत में ऊर्जा के लिए कोयले का आयात बढ़ रहा है और 2019 में यह लगभग 20 करोड़ टन था। मुख्य बात यह है कि खनिजों समेत अन्य प्राकृतिक संसाधनों के वितरण के उद्देश्य का निर्धारण जरूरी है। यदि उद्देश्य सरकार को समृद्ध करना है तो नतीजे विषम होंगे और सार्वजनिक हित को हानि होगी। यदि अस्पतालों-शैक्षणिक संस्थानों के लिए बाजार मूल्य पर भूमि की नीलामी की जाती है तो कुछ लोग ही निवेश करेंगे, क्योंकि परिसंपत्ति की कीमत उद्यम को अलाभकारी बना देगी।

सार्वजनिक संपत्ति को कौड़ियों के दाम पर वितरित नहीं किया जा सकता

बेशक सार्वजनिक संपत्ति को कौड़ियों के दाम पर वितरित नहीं किया जा सकता। आज आवश्यकता है एक ऐसे र्आिथक मॉडल की, जिसमें सरकार उद्योगों के मुनाफे में साझेदारी करे। सरकार को निजी उद्यमों को सार्वजनिक परिसंपत्तियों के सार्वजनिक हित की अनुमति देने वाली नीतियों को बनाते समय इस उद्देश्य को अंगीकार करना चाहिए। उद्यमों की उत्तरोत्तर समृद्धि के चलते सरकार के साथ लाभ को साझा करने में अपनी अलग चुनौतियां होंगी। गलत तरह से निर्धारित नीलामियों के आधार पर सार्वजनिक संपत्तियों की एकमुश्त नीलामी उद्योग के लिए मौत की घंटी साबित होगी।

सरकारी नीतियां कुछ ही भागीदारों को लाभ पहुंचाने वाली नहीं होनी चाहिए

अर्थव्यवस्था के प्रत्येक क्षेत्र में काम करते समय सरकार के पास एक अलग रणनीतिक योजना होनी चाहिए, जिससे क्षेत्र विशेष की समृद्धि में शामिल सभी लोगों की अधिकाधिक भागीदारी हो। सरकार को प्रौद्योगिकी और संसाधनों से संबंधित मुद्दों का सामना करना होगा। वास्तव में अधिकांश सरकारी संसाधनों का श्रेष्ठतम रूप में प्रयोग प्रत्येक क्षेत्र की विशिष्ट समस्याओं के विश्लेषण के साथ होना चाहिए। सरकारों को प्रत्येक उद्यमी को संदेह की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए और न ही सरकारी नीतियां कुछ ही भागीदारों को लाभ पहुंचाने वाली होनी चाहिए।

नए आर्थिक मॉडल की आवश्यकता

समय आ गया है कि हमारी राजनीतिक व्यवस्था और मजबूत एवं पारदर्शी बने। तत्काल आवश्यकता है ऐसे आर्थिक मॉडल की जिसका स्पष्ट उद्देश्य ऐसे लोगों के जीवन में समृद्धि लाना हो, जो आर्थिक और सामाजिक सीढ़ी के निचले पायदान पर हैं। इस समय हम एक ऐसे देश में रहते हैं, जिसने अपना रास्ता खो दिया है, एक ऐसा देश जो राजनीति और सत्ता की शक्ति बढ़ाने से ग्रसित है। एक ऐसा देश जहां निजी हित सार्वजनिक भलाई पर प्रधानता रखते हैं।