मैं खोया बेसहारा, तू मुझको बता, के अब मैं जाऊँ किधर ?

मैं खोया बेसहारा
पड़ा हूँ इधर
तू मुझको बता के
अब मैं जाऊँ किधर

घर चला था
तूने कैदी बनाया
इस हालात में
पूछने तक ना आया

बेघर हो गया मैं
क्या दीया जलाऊँ
तालियों से बता
घर किसका बसाऊँ

सभी जान चुके
के तू है कलाकारी
भाषणों से कैसे
जाएगी बीमारी

बस्तीयों में कैसे
हम फ़ासला बनाएँ
ऐलानों को तेरे
हम कैसे निभायें

दरवाज़ों पे उनके
मौत रोज़ खटखटाती
चला के पटाके
समझे तू बाराती

सड़क पे जाने की
अब हिम्मत नहीं है
लाठियों से कईयों की
पीठ छिल चुकी है

घरवालों को मेरी
खबर तक नहीं है
उनके दिये की तो  
रौशनी भुज चुकी है

कुछ भाई हमारे
घर को चले थे
भूखे और प्यासे
पहुँच ना सके थे

हिसाब हमारा
अब कौन करेगा
मिला ना तब भी
अब भी ना मिलेगा

मौके पे दरवाज़े भी
खड़खड़ाता रहा हूं

– KS